1947 में भारत के आजाद होते ही देश का बंटवारा हुआ तब भारत का अति प्रसिद्ध और करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र बिंदु ऐसा हिंगलाज माता का मंदिर आज के पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। हम भारतीयों के लिए जितना महत्व सिखों के पवित्र धर्म स्थान करतारपुर या ननकाना साहब का है, उतना ही महत्व हिंदुओं के लिए हिंगलाज माता के मंदिर का रहा है।
आज बहुत कम हिंदुओं को मालूम है कि हिंगलाज माता के मंदिर के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम का इतिहास भी जुड़ा हुआ है।
भगवान राम के जीवन की यात्राओं पर बनी “रामवनगमन स्थल परियोजना” का नाम आपने सुना होगा। प्रभु राम के जीवन में अनेकानेक यात्राओं में एक यात्रा जो अयोध्या से लंका तक की है, ये परियोजना उसी यात्रा पर आधारित है पर बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि प्रभु श्रीराम के जीवन में यात्राओं के पाँच चरण है; जिसमें एक चरण वो है जब भगवान भारत-भूमि के अंदर तीर्थयात्रा कर रहे थे।
अपने तीर्थयात्राओं के क्रम में प्रभु राम हिंगलाज माता मन्दिर भी गये थे, जो दुर्भाग्य से आज पाकिस्तान में है। प्रभु ने इस मंदिर में यज्ञ भी किया था और उस इलाके के राज्यों का संचालन सुचारू रूप से चले इसके लिये माँ से आशीर्वाद माँगा था। रामानंद सागर रचित रामायण धारावाहिक के अंत में स्वर धाम जाने से पहले प्रभु श्रीराम अपने पुत्रों के साथ अपने तीनों भाइयों के पुत्रों को तब के भारतवर्ष के अलग-अलग शहरों का अधिपत्य सौंपते है। जिनमें प्रभु श्री राम के दो पुत्रो में
कुश को कुशपुर और लव को लवपुर नाम से शहर सोंपा था। कुशपुर ही वर्तमान पाकिस्तान का कसूर है और लवपुर ही आज के पाकिस्तान का लाहौर है।
हिंगलाज भवानी के इस मंदिर में भगवान परशुराम भी आये थे और उसी जगह उनके पिता जमदग्नि ऋषि ने तपस्या कि थी। आज हिंगलाज मंदिर हमारे पास नहीं है, वीजा लेकर उनके दर्शन को जाने में भी कई दिक्कतें हैं और ये कहानी अकेले हिंगलाज की नहीं है।
पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में अनगिनत मंदिर और तीर्थ थे जिनका आज अस्तित्व ही मिट गया है। दुःख की बात यह है कि हममें से किसी को भी खत्म होते और मिटते मंदिरों की सूची बनाने की कल्पना भी नहीं है, इन मंदिरों का अतीत और इतिहास क्या है इसकी चिंता तो बहुत दूर की बात है।
वहां कितने मंदिर थे, कहाँ थे, किसने बनवाये थे, कब तक वहां पूजा-पाठ होते रहे और कबसे पूजा-पाठ बंद है इसके बारे में हम नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेगा ये सब कौन सोचेगा? कुछ और नहीं तो कम से कम एक संकल्प करिये कि भारत-भूमि के बाहर के ऐसे सारे मंदिरों, तीर्थ-स्थलों, गुरुद्वारों, बौद्ध-गुफाओं के बारे में हमलोग कुछ न कुछ जानकारी इकट्ठी करें और आपस में सांझा करें।
बस इन भावों को आपस में जिंदा रखिये तो एक दिन यही कल्पना वास्तविकता में भी बदलेगी और अगर इतना भी नहीं कर सकते तो फिर और बुरे के लिये तैयार रहिये।
मान्धाता के समय भारत की सीमा पूरी दुनिया में विस्तारित थी जो आज घट के केवल 33 लाख वर्ग-किलोमीटर रह गई है और अगर हम जागे नहीं तो ये सिकुड़ना आगे भी रुकने वाला नहीं।