भारत की आजादी …..!
बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना की एक ही जिद थी
लढ के लेंगे पाकिस्तान
छीन के लेंगे पाकिस्तान
मरकर लेंगे पाकिस्तान
लेकर रहेंगे पाकिस्तान
14th अगस्त 1947 को जिन्ना की ये जिद पूरी भी हो गई पर जिसकी कीमत भारत ने इतिनि ज्यादा चुकाई जितनी किसी भी मुल्क ने अपनी आजादी के लिए नही चुकाई होगी। 10 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। लाखों महिलाओं के बलात्कार हुए। डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हो गए। और ये सब क्यों हुआ?? क्योंकि जिन्ना और नेहरू को अलग अलग प्रधानमंत्री बनना था। वो पूरी क़ौम जिसका आजादी में योगदान शून्य था उसको एक अलग देश चाहिए था। जिस क़ौम ने पाकिस्तान बनाये जाने के लिए मुस्लिम लीग को 54 में से 46 सीट दे दी वो आजकल देशभक्ति की बातें करती नजर आती है। और गर्व से कहती है कि
“सबका खून शामिल है यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े है”
असल मे मुस्लिम आबादी केवल और केवल अपनी रियासतों और तुर्की के खलीफा की ऑटोमस एम्पायर को बचाने के लिए लड़ी थी और ये मैं नही कह रहा ये शब्द गांधी की कई किताबों में हैं कि उस समय मुस्लिमो ने क्या क्या कहा था। हिंदुओ को दोयम दर्जे का नागरिक मानते थे ये मुसलमान क्योंकि इनके दिमाग मे एक ही बात शुरू से है कि मुसलमान तो राज करने के लिए बना है। गांधी ने अपनी कई किताबों में इसका जिक्र किया है और जो भी ये सच्चाई जानना चाहता है वो मेरी ही वाल पर शंकर शरण जी का एक वीडियो है उसको देख सकता है।
खैर वापस लौटकर आते हैं मूल विषय पर
जिन्ना का पाकिस्तान बनाने की जिद एक ऐसी जिद थी जिसके घाव आज भी रिस रहे हैं नासूर बन गया है वो घाव आज भी 73 साल बाद भी और उससे मवाद निकल रहा है। आज भी सवाल वो ही है कि क्या इस बंटवारे को रोका नही जा सकता था क्या?? क्या लाखों बेगुनाहों की जान नही बचाई जा सकती थी?? पर मेरा मानना इस से बिल्कुल उलट है।अगर बंटवारा रोक भी दिया गया होता तो भी इस मुल्क में जिहादी फसाद बन्द नही होते।
खैर
हालांकि भारत का बंटवारा रोका जा सकता था। हिंदुस्तान और पाकिस्तान बनने से रोका जा सकता था और हो तो ये भी सकता था कि अगर गांधी ने 1919 में खलिफत आंदोलन के समय मुस्लिमों को इतना सिर पर नही चढ़ाया होता तो शायद मुस्लिमो की हिम्मत नही होती कि वो #डायरेक्टएक्शनडे और #मोपला जैसी घटनाएं कर पाते। परन्तु जिस गांधी ने ये कहा था कि बंटवारा मेरी लाश पर होगा उसी गांधी ने उस बंटवारे को स्वीकार किया और दान में 35 करोड़ रुपये भी दे दिए।
खैर इस बंटवारे को रोका जा सकता था यदि एक राज जो इतिहास में दफन है वो खोल दिया जाता तो। आज मैं आपको उसी राज की कहानी सुनाता हूँ। और यदि आपको इस राज में जरा भी सच्चाई नजर आए तो इस पोस्ट को शेयर जरूर कीजियेगा।
हुआ यूं कि 1945-1946 के चुनाव में जिन्ना की मुस्लिम लीग को पूरे भारत मे मुसलमानों का बहुत समर्थन मिला था जिसकी वजह से जिन्ना का ख्वाबों का पाकिस्तान हक़ीक़त के बेहद करीब हो गया था। जिन्ना तेजी से पाकिस्तान को बनाये जाने के लिए चाल पर चाल चल रहा था। सुबह और शाम उसके जहां में सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान था। लेकिन इसकी कीमत चुका रहा था जिन्ना का शरीर। जिन्ना को अक्सर खांसी के दौरे पड़ते थे और एक बार खांसी आती तो वो रुकने का नाम नही लेती थी। जिन्ना 1940 से ही #ब्रोंकाइटिस का मरीज था।
1946 के बाद जिन्ना की ये बीमारी तेजी से बढ़ने लगी। जिन्ना को एक अच्छे डॉक्टर की तलाश थी और अगर वो चाहता तो दिल्ली के किसी जाने माने डॉक्टर से सलाह ले सकता था जिनमें कुछ जाने माने अंग्रेज डॉक्टर भी थे परन्तु कोई रिस्क लेना नही चाहता था। वो जानता था अगर उसको कोई गंभीर बीमारी हुई तो इसका पता तुरन्त अंग्रेज सरकार को लग जायेगा और उसके बाद उसकी प्रधानमंत्री की कुर्सी और एक अलग देश बनाने का सपना धूमिल हो जाएगा।
जिन्ना की तलाश पूरी हुई मुम्बई के एक पारसी डॉक्टर जालरतन जी पटेल पर जाकर। डॉक्टर पटेल ने जिन्ना को एक्स रे करवाने की सलाह दी। जिसके बाद पता चला कि जिन्ना को हड्डियों की जानलेवा टी बी ने जकड़ लिया है। टी बी का वायरस जिन्ना के फेंफड़ों को गला चुका था। मौत पूरी रफ्तार से जिन्ना की ओर बढ़ रही थी। उस दौर में टी बी का कोई इलाज संभव नही था और जिन्ना को तो लास्ट स्टेज की टी वी थी। डॉक्टर ने भी जिन्ना को कह दिया कि उसकी जिंदगी के बस कुछ ही महीने बचे हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल ये था कि बिना जिन्ना के पाकिस्तान कैसे बन जाता क्योंकि जिन्ना नही तो पाकिस्तान नही। लेकिन जिन्ना के शातिर दिमाग मे कुछ और ही चल रहा था। जिन्ना को पता था कि यदि उसकी मौत हो गई य्या अंग्रेज सरकार को ये बात पता चल गई तो दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान की लकीरें कभी नही खिंच पाएंगी। जिसके लिए जिन्ना ने अपने पारसी डॉक्टर पटेल से ये वादा लिया कि वो किसी को भी उसकी बीमारी के बारे में नही बतायेगा। डॉक्टर पटेल ने भी जिन्ना के टीवी वाले एक्सरे को एक लिफाफे में बन्द करके अपने लॉकर में सुरक्षित रख दिया। और इतिहास की तकदीर बदलने वाला ये राज एक लिफाफे में कैद हो गया।
उधर जिन्ना के सामने #ब्रिटिश हुकूमत और #कॉंग्रेस झुक गई और जिन्ना की बात मान ली गई। पाकिस्तान बनने के बाद जिन्ना मुम्बई छोड़कर पाकिस्तान चला गया। जिन्ना कुछ ही दिनों का मेहमान है ये राज ना तो माउंट बेटन जान पाया ना ही नेहरू और ना ही सरदार पटेल जी। जिन्ना कैसे अपनी बीमारी छुपा सका इसका राज पहली बार खुला जब फ्रीडमएटमिडनाईट के लेखक डोमिनिक ला पेयर ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया। वो भी हिंदुस्तान के बंटवारे के 25 वर्ष के बाद और तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
सुनिए डोमिनिक ला पेयर ने जब जिन्ना का एक्सरे माउंटबेटन को दिखाया था तो माउंटबेटन की क्या प्रतिक्रिया थी। डोमिनिक ला पेयर लिखते हैं ” मैं और लैरी कॉलिन्स लार्ड माउंटबेटन से मिलने लंदन में उनके घर गए। हमारे पास जिन्ना का एक्सरे था जिसको हमने जिन्ना के डॉक्टर से हासिल किया था। जब हमने जिन्ना का एक्सरे भारत के अंतिम वॉयसराय माउंटबेटन को दिखाया तो वो कुर्सी से उछल पड़े। और उन्होंने कहा कि यदि मुझे उस समय पता चल जाता कि जिन्ना कुछ ही समय का मेहमान है तो मैं भारत की आजादी को साल दो साल के लिए टाल देता।
ब्रिटिश सरकार के कई दस्तावेज कहते हैं कि ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी कॉंग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओ पर नजर रखती थी लेकिन इसके बाद भी वो जिन्ना की बीमारी का राज नही जान पाई। सोचिए अगर ये राज खुल जाता तो आज भारत ही नही दुनियां का इतिहास और भूगोल ही शायद कुछ और होता।
पाकिस्तान तो बन गया लेकिन जिन्ना को अपनी जिद का अंजाम देखना अभी बांकी था। जिन्ना का वास्ता अब हक़ीक़त से होने वाला था।जिन्ना ने पाकिस्तान खड़ा कर दिया और बदले में उसको मिला #कायदे_आजम का खिताब। लेकिन ये खिताब बस नाम का था। टीवी के मरीज जिन्ना को उसके काम के बोझ ने बेहद कमजोर बना दिया था। और उधर पाकिस्तान को अपने पैरों पर खड़ा करना इतना आसान भी नही था। सभी जानते हैं कि अगर भारत ने 35 करोड रुपये जो गांधी ने जिद करके दिलवाए, ना दिए होते तो शायद पाकिस्तान की जनता कुछ दिनों में ही भूखी मर जाती और इनकी अक्ल ठिकाने आ जाती।
एक तो पाकिस्तान का खजाना वैसे ही खाली था दूसरा हिंदुस्तान से आये मुजाहिरों का बोझ तीसरा मुस्लिम लीग के नेताओं की आपस मे सिर फुटौव्वल और इनमें सबसे आगे था पाकिस्तान का पहला #प्रधानमंत्री #लियाकतअलीखान। जिसे खयड जिन्ना ने पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बनाया था।
उधर तमाम ऐशो आराम के बाबजूद भी जिन्ना की सेहत दिन प्रति दिन गिरती जा रही थी।जिन्ना के सामने एक ही चारा था कि आवो हवा बदल ली जाए। जिन्ना को डॉक्टरों ने सलाह दी कि उसको किसी पहाड़ी इलाके में आराम के लिए चले जाना चाहिए। जिसके लिए जिन्ना ने चुना “#जियारत” पाकिस्तान का एक खूबसूरत पहाड़ी इलाका।
जून 1948 में जिन्ना ने अपना पूरा कामकाज लियाकत अली को सौंपा और खुद जियारत के लिए निकल गया। कहते हैं इसी दिन से जिन्ना को उनके पाकिस्तान ने उनके ही लोगों ने किनारे लगाने की शुरुआत कर दी। हिल स्टेशन जियारत में वो बांकी देश से कट चुका था। #14th_अगस्त 1948 को जब पाकिस्तान अपना पहला स्वतनत्र्ता दिवस मना रहा था तब जो पोस्टर छपे उनमें जिन्ना की जगह लियाकत अली का नाम था।
जिन्ना तब जियारत में अपने आखिरी दिन गिन रहा था तब लियाकत अली एक बार ऊससे मिलने आया। जिसके बारे में जिन्ना की बहन #फातिमा_जिन्ना ने अपनी किताब #माय_brother में लिखा है “लियाकत अली जब मिलकर चले गए तो भाई ने मुझसे कहा कि जानती हो फातिमा ये लियाकत मुझसे क्यों मिलने आया था?? वो ये जानना चाहता था कि मैं कितने दिन और जिंदा रहूँगा।”
जियारत में जिन्ना की तबियत और बदतर हो गई थी उसको आखिरी इलाज के लिए करांची लाया गया था। शाम चार बजे उसका विमान करांची एयरपोर्ट पर उतरा पर गद्दारों को उसकी सजा यहीं मिल जाती है तो वैसा ही जिन्ना के साथ हुआ। जिन्ना ने जो गद्दारी भारत माँ से की थी और एक अलग देश पाकिस्तान बना लिया था उसी पाकिस्तान का कोई भी मंत्री उसके इस्तकबाल के लिए नही आया था। जिन्ना को कुछ लोगों की मदद से एक स्ट्रेचर पर लिटाकर एम्बुलेंस तक पहुंचाया गया।
जिन्ना की बेइज्जती यहीं खत्म नही हुई जो एम्बुलेंस जिन्ना को लेकर उसके घर की ओर जा रही थी वो कुछ दूर जाकर रुक गई क्योंकि उसका पेट्रोल खत्म हो गया था।लाचार जिन्ना एम्बुलेंस में ही लेता हुआ शायद अपने गुनाहों की माफी मांग रहा होगा।
तो दोस्तों ये थी कहानी गद्दार जिन्ना की