शूद्रो ने सदियों से भव्य मंदिर, इमारते और किल्लों का निर्माण कर अतुल्य भारत बनाने में अहम योगदान दिया था और उनके सहकार से ही आज भारत आत्मनिर्भर बनेगा…..!
भारत का पिछड़ा समाज, आत्मनिर्भर भारत और भारत की शिक्षा व्यवस्था…..!
प्राचीन भारत की समाज व्यवस्था में क्षत्रिय देश की रक्षा करते थे, ब्राह्मण गुरुकुल में शिक्षा देते थे वैश्य व्यापार करते थे, फिर ये भारत को अतुल्य किसने बनाया…..? भारत के हर एक प्राचिन नगरों में दिखनेवाले हजारों वर्ष पुराने भव्य मंदिरों और किल्लों का निर्माण कौन करता था…..?
देश में सेक्युलर और लिबरल ने ऐसा झूठ चलाया है कि सनातन संस्कृति में प्राचीन समय में मंदिरों में शूद्रों – दलितों का प्रवेश निषेध था उन लिबरल के पास क्या इस प्रश्न का जवाब है कि हजारों वर्ष पुराने वैभवशाली मंदिरों, उन मंदिरों में दिव्य प्रतिमाओं और अन्य स्थापत्य कला के नमूनों का निर्माण कोन करता था…..? उन मंदिरों में बजने वाले वाजिंत्र और आज के विज्ञान युद्ध में इसे निर्माण करना असंभव दिखाई देता है ऐसी उत्कर्ष और दिव्य मूर्तियों का निर्माण किसने किया था…..? ब्राह्मण क्षत्रियों ने या फिर वैश्यों ने….? उत्तर है शूद्रो ने…..!
देश की रक्षा हेतु लड़ने वाले क्षत्रियों केलिए युद्ध में उपयोग में आने वाले आयुध और शस्त्र, आज भी मजबूती के साथ खड़े हजारो वर्ष पुराने मजबूत किल्ले और किल्लो के घेराव में बसा नगर का निर्माण, वैश्य जो व्यापार करते थे उन सभी चीजों के निर्माण का कार्य यही शुद्र किया करते थे…..! और तब गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्रों में भी सबसे बड़ी तादाद उन्हीं की थी…..!
भारत में लिबरल और सेक्युलरो ने एक एजेंडे के तहत देश में गलत तथ्यों को प्रचलित किया कि गुरुकुल ने सिर्फ ब्राह्मण और क्षत्रिय जैसे उच्च वर्णों की ही पढ़ाई होती थी, तो क्या बिना पढ़े ही शूद्रों ने अतुल्य भारत का निर्माण किया होगा…..? ऐसे अदभूत मंदिर वर्तमान टेक्नोलॉजी के युग में भी शिल्पकारो केलिए निर्माण करना असंभव है ऐसी खूबसूरत और टिकाऊ इमारते बिना शिक्षा – कौशल्य लिए ही बनाई होगी क्यां……?
जिनकी रुचि शास्त्र की पढ़ाई में थी वह विद्या अर्जन कर समाज को शिक्षित करने का कार्य करता था और वह ब्राह्मण कहलाया, जो साहसिक था और देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को दाव में लगाने का साहस रखता था वह क्षत्रिय कहलाया और जिनकी रुचि धन अर्जन करने में थी और जो दूरदराज के नगरों में वस्तु विनिमय का कार्य करता था वह वैश्य कहलाया और जिनके पास हुनर था वो कोई ना कोई राष्ट्र निर्माण कार्य में लग जाता था और वही शूद्र कहलाया।
प्राचीन भारत को आत्मनिर्भर और अतुल्य इन्हीं शूद्रों ने बनाया था और वर्तमान भारत को आत्मनिर्भर बनाने में उनका अहम योगदान हो सकता हैं…..!
पिछले 100 वर्षों में ऊंच नीच का जो जातिगत भेदभाव दिखाई देता है उतना व्यापक सनातन संस्कृति में पहले कभी नहीं रहा…..! एक अबोल पशु और जीव को अपने परिवार का हिस्सा मानने वाली संस्कृति भला अपने बंधुओं से भेदभाव कैसे कर सकती है…..?
प्राचीन समय में भारत में वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर नहीं लेकिन कर्म के आधार पर थी जबकि आज की जाति व्यवस्था जो अंग्रेजों की देन है वह जन्म के आधार पर है कर्म के आधार पर नहीं…..!
भारत निर्माण का जिम्मा जब शूद्र वर्ण के हाथों में था तब रोजगार हुनर के आधार पर मिलता था न कि सर्टिफिकेट के आधार पर…..! लेकिन अंग्रेजों ने विश्व में प्राचीनतम और सबसे उत्कर्ष ऐसी गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था / भारतीय शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त की और राजा राममोहन राय जैसे एजेंटों को आगे कर अपनी कॉलोनियल/ कोनवेन्ट स्कुल, सर्टिफिकेट के आधारित Indian education act 1813 लागू कर अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था की शुरुआत की…..! और हिंदू समाज को जाति के आधार पर विभाजित करने के लिए cast system को लागू किया…..! जो पहले शूद्र वर्ण की गिनती में आते थे वही अंग्रेजों की बनाई गई cast system में ST, SC और OBC मै समाहित किए गए…..!
अब आपको प्रश्न होगा कि अंग्रेजों को यह सब करने की क्या जरूरत थी…..? तो सुनिए महज कुछ हजार ब्रिटिशरो को पूरे भारत पर राज करना था तो शासन चलाने के लिए अमलदार- नोकर तो चाहिए और वो भी ऐसे जो उनके दिशा निर्देश पर काम करें और जिनकी सोच भी गुलामी की शासन व्यवस्था से मेल खाती हो…..! इसलिए अंग्रेज जहां से सीधा शासन करते थे ऐसे प्रोविंस में अपनी शासन व्यवस्था चलाने के लिए अमलदारो को नियुक्त करते थे। अब उनके साथ काम करने वाले अमलदार को उनकी भाषा यानी अंग्रेजी तो आनी चाहिए इसी कारण उन्होंने कॉन्वेंट स्कूल को बढ़ावा दिया। अंग्रेजों के समय मैं नौकरशाही में सबसे बड़ा पद पाने के लिए सिविल सर्विस की परीक्षा पास करनी पड़ती थी।
परिवार के दबाव के बावजूद पक्के राष्ट्रभक्त आजाद हिंद फौज के संस्थापक क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटेन में सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने के बावजूद अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक ऐसी कलेक्टर की नौकरी नहीं करने का निर्णय लिया था।
अंग्रेजों की भारत में लागू की गई शिक्षण व्यवस्था में भाषा ज्ञान तो था लेकिन कहीं पर भी कौशल्या का स्थान नहीं था। ईतने वर्षों के पश्चात आज भी शिक्षण व्यवस्था में ज्यादा कुछ परिवर्तन नहीं आया तो आज भी भारतीय शिक्षा व्यवस्था में पढ़ लिख कर बाहर निकलने वाले छात्रों में पढ़ाई से कोई हुनर नहीं आता। वर्तमान स्थिति में टेक्नोलॉजी की वैश्विक हरीफाई में यही भारत के पिछड़ेपन का कारण बना…..!
मेरा बचपन भारत के छोटे से गांव में बीता है। और जहां तक मेरा मानना है आज से सिर्फ 30 वर्ष पहले देश में अपनी आजीविका के लिए सरकारी नौकरी कोई प्रतिष्ठा वाला क्षेत्र नहीं था। हमारे समाज में तब सरकारी नौकरी करने वालों को शादी के लिए लड़की भी नहीं मिलती थी…..!
अंग्रेजों के शासन में जन्म के आधार पर जाति प्रमण पत्र देकर जातियों का निर्माण किया गया। और 800 – 1000 वर्षों कि गुलामी के कालखंड में अपने अस्तित्व को टिकाने के लिए कुछ ना कुछ कुरीतिया आई और यही कारण रहा की अपने अस्तित्व के लिए संघर्षमय जीवन में अंग्रेजों के जाने के बाद आजाद भारत में भी जाति व्यवस्था को बढ़ावा मिला…..! संविधान निर्माताओं ने सभी जातियों को आर्थिक बराबरी देने के लिए दलित और पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने का कानून बनाया जो शिक्षा व्यवस्थाओं में भी लागू किया गया। सरकारी नौकरियों में अनामत व्यवस्था एक राजकीय मुद्दा बना रहा। अपने अस्तित्व को टिकाने के लिए लगभग शासन में रहने वाले राजनीतिक दलों ने भारत के 70% जातियों जिन्हें हम ST, SC या OBC कहते हैं उनको अनामत देकर उनका तुष्टीकरण किया…..!
गुजराती में एक कहावत है ” મોરના ઈંડાને ચીતરવા ના પડે ” और ” બાપ જેવા બેટા ને વડ જેવા ટેટા ” यानी हुनर या कौशल्या पीढ़ी दर पीढ़ी उतरते हैं। जो कौशल्या पिता में होता है वह सहज रूप से पुत्र में आता है। प्राचीन भारत में जिन्होने अतुल्य भारत का निर्माण किया था तब उनका कौशल्या ही उनकी आजीविका का आधार था। वर्तमान समय में उन्हें अपने प्राचीन काल से पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त कौशल्या/हूनर से विमुख कर उन्हें अनामत आधारित सरकारी नौकरियों की लाइन में खड़ा कर दिया। ऐसा होने से देश का कौशल्या धन अपने मूल प्रवाह से वंचित हुआ जिसने अंततः न सिर्फ देश का किन्तु उस कौशल्य के धनी शूद्र समाज का भी अहीत किया…..!
देश में सरकारी नौकरियो का प्रतिशत देश के कुल नौकरियों में सिर्फ 5 % भी नहीं जबकि 95% नौकरियां देने वाले निजी क्षेत्र में कहीं अनामत लागू नहीं है और अपने हुनर के आधार पर ही मिलती है…..! ऐसे में राजनीतिक हितों को साधने के लिए राजनीतिक पार्टियां अनामत का जरूरत से अधिक प्रचार प्रसार कर आज की युवा पीढ़ी को भ्रमित कर रही है और युवा पीढ़ी भ्रमित हुई भी है। देश में अनामत के नाम पर होने वाले बड़े आंदोलनों में छात्रों का बढ़-चढ़कर सम्मिलित होना यही साबित करता है।
भारत की प्राचीन गुरुकुल शासन व्यवस्था में शिक्षा का मूल उद्देश्य आत्म निर्भर होना था लेकिन आज की शिक्षा व्यवस्था का मूल उद्देश्य यही है कि पढ़ने वाला छात्र डीग्री/ सर्टिफिकेट पा ले और चाहे आत्मनिर्भर होने का कोई कौशल्य हो या ना हो फिर भी उसे सर्टिफिकेट के आधार पर कहीं ना कहीं नौकरी मिल जाए…..!
देश की आजादी के पश्चात भी जिन विचारधारा की सरकारों ने देश पर शासन किया उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ज्यादा कुछ ना कर अपनी देश की प्राचीन सनातन संस्कृति से विरोधाभासी विचारधारा को स्थापित करने के लिए सनातन संस्कृति को नीचा दिखानेवाले इतिहास को लागु किया और भारत पर बर्बरता पूर्वक शासन करनेवाले मुगल और अंग्रेजों की शासन व्यवस्था और उनकी संस्कृति को श्रेष्ठ दिखाया गया…..! ऐसी शिक्षा व्यवस्था में पढ़ाई करके जो उत्तीर्ण होता था उनको उनके सर्टिफिकेट के आधार पर सरकारी नौकरियां मिलने लगी तो वर्तमान भारत में सरकारी अमलदारो की ऐसी भ्रमित मानसिकता रही कि पाश्चात्य संस्कृति हमारी संस्कृति से श्रेष्ठ थी, मुगल कोई लुटेरे नहीं लेकिन एक अच्छे शासक थे जिसने भारत निर्माण में सहयोग दिया था …..? देश और देशवासियों के प्रति प्रेम के अभाव में उन्होंने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया….! और भ्रष्टाचार के कारण बढ़ने वाली आईने नई पीढ़ी को सरकारी नौकरियों के प्रति आकर्षित किया…..!
आज की युवा पीढ़ी को यह तो मालूम है कि ताजमहल शाहजहां ने बनवाया था लेकिन इन्हें यह किसी ने नहीं बताया कि हंपी, कर्नाटक में विरुपक्षा मंदिर, गुजरात के मोढेरा में सूर्य मंदिर, राजस्थान में शेर कुंभलगढ़ या चित्तौड़गढ़ का किला और मदुरई का मीनाक्षी मंदिर किसने बनाया या बनवाया…..? भारतीय बच्चों को इतिहास में सिर्फ बाबर, अकबर और औरंगजेब ही याद है क्योंकि 1980 तक के शासन में भारतीय इतिहास लिखने वाले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद, हुमायूं कबीर, करीम चागला, फखरुद्दीन अली अहमद और नुरुल हसन रहे…..!
लोकशाही शासन व्यवस्था नीतियों के आधार पर चलती है और पुरानी नीतियों में बदलाव से ही देश में परिवर्तन लाया जा सकता है। नीतियों को बदलने और भारत के सही इतिहास को वर्तमान पीढ़ी के सामने रखने केलिए भारत के सच्चे इतिहास और भारत की संस्कृति को जानती हो और उसे पुन: प्रस्थापित करने का साहस रखती हो ऐसी विचारधारा वाली स्पष्ट बहुमत की सरकार बनने में 70 वर्ष लग गए। अति सामान्य परिवार से संघर्ष करके देश के प्रधानमंत्री का पद हासिल करने तक वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र निर्माण में शिक्षा के महत्व को भली-भांति समझते हैं…..! यही कारण रहा होगा कि जैसे ही भारत को सक्षम और स्वामी विवेकानंद के विचारों का विश्वगुरु भारत बनाने केलिए आत्मनिर्भर भारत योजना अमल में लाए तुरंत उसको सफल करने के लिए नई शिक्षा नीति को भी लागू कि गई।
शिक्षा नीति की सफलता विद्यार्थी को आत्म निर्भर बनाने में है और आत्म निर्भर नागरिक ही राष्ट्र को आत्मनिर्भर बना सकता है…..!
ऐसा नहीं कि नई शिक्षा नीति आते ही भारत आत्मनिर्भर हो जाएगा लेकिन यह जरूर मानता हूं कि आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ने वाला पहला कदम जरुर है…..!
अस्तु…..!