भारत को ईरान के चाबहार पोर्ट की जरूरत चाइना के CPEC के प्रत्युत्तर के रूप में थी। मोदी सरकार के POJK को भारत में शामिल करने के अपने कूटनीतिक प्रयासों को तेज करते ही चाइना ने CPEC का विकल्प ढूंढना शुरू कर दिया है। एक बार भारत पुनः POJK पर अपना कब्जा प्राप्त कर ले उसके बाद भारत को ईरान के चाबहार की आवश्यकता ही नहीं रहेगी! क्योंकि सीपेक नहीं रहेगा, दूसरी तरफ भारत सड़क या रेल मार्ग से अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और रूस के रास्ते सीधा अपना माल यूरोप तक बेच सकता है!
मोदी सरकार ने जब से कश्मीर से कलम 370 हटाई है और POJK – Pakistan occupied Jammu and Kashmir को भारत में मिलाने के लिए अपने कूटनीति तेज कर दी है तब से चीन भयभीत है। चीन का अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक OBOR- one belt one road का महत्वपूर्ण हिस्सा CPEC- China Pakistan economic corridor है। CPEC प्रोजेक्ट के लिए चाइना 75 billion $ निवेश कर रहा है। इसका कुछ हिस्सा POJK और बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के बलूचिस्तान से होते हुए ग्वादर पोर्ट को जोड रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी BLA बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद करने के लिए जंग लड़ रही है। जब से CPEC काम शुरू हुआ है तब से बलूचिस्तान में पाकिस्तान के सामने हिंसक जंग छेड़ दी है। जिसके चलते चीन को अपने प्रोजेक्ट का भविष्य अनिश्चित लग रहा है। CPEC के विकल्प के तौर पे चाइना ने ईरान के साथ 400 बिलियन डॉलर का एग्रीमेंट किया है।
2016 में मोदी सरकार ने ईरान के साथ 8 बिलियन डॉलर के निवेश का करार किया था जिसमें चाबहार पोर्ट सबसे बड़ा प्रोजेक्टर था। ऐसी खबर आ रही है कि ईरान ने भारत के साथ चाबहार तक की रेलवे नेटवर्क बिछाने का कॉन्ट्रैक्ट वर्क डीले का कारण देते हुए रद्द किया है। साथ ही चीन ने ईरान के साथ 400 billion $ निवेश करने का करार किया है जिसमें चाबहार तक रेलवे नेटवर्क बिछाने का कॉन्ट्रैक्ट भी आ जाता है।
चाबहार पोर्ट को लेकर भारत का पूरा प्रोजेक्ट समझते हैं
भारत के ईरान के साथ इस प्रोजेक्ट में 3 करार है
1 चाबहार पोर्ट
2 चाबहार अफगानिस्तान एक्सप्रेसवे
3 चाबहार अफगानिस्तान रेल प्रोजेक्ट
पहले दोनों प्रोजेक्ट पूरी तरह से अपनी तय गति से चल रहे है। जब अमेरिका ने ईरान पर पहली बार प्रतिबंध लगाए थे तब भारत को चाबहार पोर्ट का निर्माण करने और एक निश्चित समय सीमा तक ईरान से पेट्रोलियम पदार्थों के आयात की छूट कुछ दूसरे देशों के साथ दी थी।
चाबहार पोर्ट और चाबहार अफगानिस्तान एक्सप्रेस प्रोजेक्ट तो भारत सरकार की प्राथमिकता में थे लेकिन चाबहार रेल प्रोजेक्ट सरकार की प्राथमिकता में नही था तभी भारत सरकार की तरफ से इसके लिए धन जा आवंटन पिछले 4 वर्षों में किया गया पर ईरान को यह प्रोजेक्ट अपनी घरेलू जरूरतों हेतु जरूरी लगता है और ये उसकी प्राथमिकता में शामिल रहा है। अतः भारत की उदासीनता देखते हुये उसने भारतीय अनुबंध रद्द कर दिया और विश्व भर में अलग थलग पड़े चीन ने इस प्रोजेक्ट पर अपनी हामी भर दी।
वर्तमान समय मे अमेरिकी प्रतिबन्धों के चलते ईरान की अर्थव्यवस्था के लिए भी ये प्रोजेक्ट जरूरी था वही भारत और चीन के अनुबंध में एक मूल अंतर भी है। भारत इस प्रोजेक्ट को पूर्ण होने पर 30 वर्षो तक स्वयं चलाने वाला था। जबकि चीन इसमे महज एक निवेशक ठेकेदार के रूप में है। जिसका खमियाजा बाद में ईरान को ही भुगतना पड़ेगा।
भारत अब तक क्रूड ऑयल के लिए सिर्फ ईरान पर अवलंबित था। जिसके चलते पहले की सभी सरकारों ने अपने विदेश नीति में ईरान को इजरायल से ज्यादा महत्व दिया था। मोदी जी भारत के पहले प्रधानमंत्री थे जिसमें ईरान के साथ अपने संबंध को बरकरार रखा और इजरायल के साथ अपने संबंधों को गहरा बनाया। जब अमेरिका ने पहले ईरान से तेल लेने के लिए विश्व को चेतावनी दी थी उस को दरकिनार कर भारत ने ईरान से ऑयल की आयत चालू रखी थी। धीरे-धीरे भारत में ऑयल के निर्यात को ईरान से कम करते हुऐ सऊदी अरब और अमेरिका से ज्यादा मात्रा में आयात कर उसकी भरपाई कर ले रहा है। साथ ही में सऊदी अरब के साथ किए गए एग्रीमेंट के अनुसार क्रूड ऑयल का बहुत बड़ा जत्था भारत में रिजर्व है। 2020 आते-आते भारत ने आज क्रूड ऑयल में ईरान पर अपना अवलंबन न के बराबर कर दिया है। वैश्विक कूटनीति में चीन के सामने खड़े रहने के लिए आज भारत को ईरान से ज्यादा इजरायल ओर अमेरिका की जरूरत है।
भारत ने अगवाई लेते हुए ऑयल के विकल्प के तौर पे सौर ऊर्जा पर अपना ध्यान बढ़ाया है। विश्व के करीब 80 देश भारत की ” वन वर्ल्ड वन सन वन ग्रीड ” परियोजना में शामिल हुए हैं। भारत साथ में इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के लिए योजनाओं को जमीनी स्तर पर उतारने में लगा है जिससे भारत को भविष्य में ईरान समेत अरब के बाकी इस्लामिक / ओपेक संघ के देशों की पहले की जितनी जरूरत नही रहे जायेगी वही कच्चे तेल के लिए हम जो भुगतान का बड़ा हिस्सा विदेशी मुद्रा के रूप में करते वो भी बचेगा जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
भारत को ईरान की जरूरत सिर्फ तब तक है जब तक पाकिस्तान के कब्जे में गिलगित बाल्टिस्तान है। ध्यान रहे भारत की सीमा अफगानिस्तान से भी लगी हुई है, जिसपर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है। अब अगर भारत को यहां वापस से कब्जा प्राप्त करना है तो भारत का सबसे बड़ा सहयोगी अमेरिका बनेगा ना कि ईरान। अगर इस नजरिए से देखा जाए तो भारत ने दूसरी बार अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को मान कर और पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका से रिश्ते मजबूत करके भविष्य की रूपरेखा तय की है।
अब अगर ईरान चाहे तो चीन के चक्कर में भारत से रिश्ते खराब कर अपना एक बड़ा मार्केट और साथ में अपना पुराना दोस्त खो सकता है। उम्मीद है ईरान कभी ऐसी गलती नहीं करना चाहेगा।
देखा जाए तो वर्तमान में भारत पाकिस्तान पर हमला करके अपना POJK छुड़ा सकता है। और चीन अगर पाकिस्तान के बचाव में आता है तो चीन को अक्साई चिन से भी हाथ धोना पड़ेगा।
इस वक़्त पूरी दुनिया चीन के खिलाफ है। अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, जापान, इजरायल, फ्रांस और ब्रिटेन आदि देश खुलकर भारत के समर्थन में है और चीन के प्रति भारत का रुख भी आक्रामक है। मोदी सरकार में कड़े निर्णय लेने की क्षमता भी है लेकिन एक सवाल उठता है, क्या देश की जनता युद्ध के लिए तैयार है ?
अस्तु।
4 comments
Very good explanation Ambrishbhai. We will surely forward this to others.
Good Analysis..
हा अभी इस माहोल में वेसे ही सब रुका हूवा हे तो आरपार कर ही लेना चाहिये
बहोत अच्छा ARTICLE है