” इंडिया यानी भारत – कल और आज “
जब हम मूल भारतीय ” अखंड भारत ” की बात करते हैं तब हो सकता है कि जो भारतीय नहीं है या भारत के पुराने इतिहास की जानकारी नहीं रखते ऐसे सभी के मन में तुरंत इसको स्वीकार करना थोड़ा कठिन हो। किन्तु नजदीकी इतिहास में सन् 1857 के स्वतंत्र संग्राम के पश्चात जब भारत में अंग्रेज सरकार का शासन आया तब अंग्रेज जिस भूभाग को इंडिया कहते थे उसे स्वीकार करने में किसी को दिक्कत नहीं होगी। इस आर्टिकल में हम ” इंडिया यानी भारत ” की घटती हुई सीमाओं का विश्लेषण करेंगे।
अंग्रेज प्रशासनिक अफसर जब कलकत्ता के अपने दफ़्तर में बैठते थे तब पीछे की दीवार पर ” इंडिया यानी भारत ” का मानचित्र लगाते थे। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि उस नक़्शे के अनुसार भारत का क्षेत्रफल लगभग 83 लाख वर्ग किलोमीटर था। जो आज घटकर महज 33 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया है। करीब 50 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन हमने पिछले डेढ़ सौ वर्ष में हमने खोई है।
एक सामान्य भारतीय तो उतना ही जानता है कि देश आजाद हुआ तब सन 1947 में हमने बंटवारे में पश्चिम पाकिस्तान और पूर्व पाकिस्तान यानी आज का बांग्लादेश खोया। इससे अधिक शायद ही कोई जानकारी होगी। किंतु सच तो यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अगर उसमें आज का म्यानमार भी जोड़ ले तो कुल क्षेत्रफल 20 लाख वर्ग किलोमीटर ही होता है। इसके अलावा भी हमने 30 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन गवाई है और यह सिलसिला 1947 के पश्चात भी नहीं थमा।
अगर हम अंग्रेज के नक्शे को ध्यान से देखें तो मालूम पड़ता है कि ‘ अदन ‘ का इलाका भी विस्तृत भारत का ही हिस्सा था। और 1937 तक वह विस्तृत भारत का हिसाब बना रहा। उसके अगल बगल में ‘ त्रिशूल स्टेट्स ‘ यानी ‘ फारस की खाड़ी ‘ भी इन्हीं मानचित्र मे समाहित थी। इतना ही नहीं सोमालीयालैंड श्रीलंका और सिंगापुर भी ब्रिटिश जिसे इंडिया कहते थे उसी भारत का हिस्सा था। बलूचिस्तान और खैबर पख्तून’ख्वाँ का इलाका भी हमारा ही था।
और ऐसा नहीं कि ये हिस्से ब्रिटेन के उपनिवेश थे इसलिये हम उन्हें अखंड भारत की सीमाओं में मान रहे हैं बल्कि ऐसा इसलिये है क्योंकि स्वयं ब्रिटिश लोग ये मानते थे कि यहां की सभ्यताएं और संस्कृति अतीत से भारत के ही अंग रहे हैं।
अफगानिस्तान गया, सिंध गया, मुल्तान गया, बलूचिस्तान, आधा पंजाब और बांग्लादेश गया, कश्मीर गया और हम सिवाय कबूतर उड़ाने और ये डींग मारने में रह गये कि हम तो बड़े शांति वाले देश हैं। हम तो सदियों से मान रहे हैं कि ” वसुधैव कुटुंबकम ” हम भारतीय विश्वमानव हैं। किंतु यह कभी नहीं सोचा कि वसुधैव कुटुंबकम रटते हुए कलतक हमारी सनातन संस्कृति पूरे विश्व में फैली थी और वहीं आज हम सिर्फ इतने में बचे हैं।
दरअसल हमारे शास्त्रों ने हमें एक और सूत्र भी दिया हुआ है ” वीर भोग्य वसुंधरा ” किंतु इस पर हमारा कभी ध्यान ही नहीं गया।
आज पहली बार देश में ऐसा शासक आया है जिसने कटे हुए भारत के हिस्से को फिर से भारत में जोड़ के उनकी पुरानी सरहदों को पुनः स्थापित करने का काम किया है। और यहीं से विस्तृत भारत या अखंड भारत के निर्माण की शुरुआत हुई है।
अस्तु।
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Very good information… Thanks