28th Apr 1943
सुभाष चंद्र बोस ने भारत को एक नारा दिया था आप मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। जबकि गांधी जी ने भी देश को एक नारा दिया था ” કાગડા કૂતરાના મોતે મરીશ પરંતુ સ્વરાજ તો લઈને જ જંપીશ ” यानी कौवे कुत्ते की मौत मारूंगा लेकिन आजादी लेकर रहूंगा।
हिंदू नारों से ही हम अंदाजा लगा सकते हैं कि दोनों की सोच देश को आजादी को लेकर क्या रही थी। सुभाष बाबू के नारे में देश को आजादी दिलाने के लिए स्पष्ट दिशा दिखती है, इस नारे को सुनकर भारतीयों का सीना साहस से फूल जाता है। जबकि गांधी जी के नारे में मरने की बात आती है लेकिन आजादी कैसे लेनी है उसकी कोई बात स्पष्ट नहीं होती। सिर्फ अपमानजनक बच्चों से भला कैसे कोई आजादी पा सकता है।
आज बात करेंगे हम सुभाष चंद्र बोस की एक ऐतिहासिक घटना की जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और देश को आजादी दिलाने के लिए सशस्त्र सेना बनाने के लिए 28 अप्रैल 1943 के दिन जापान और जर्मनी के सैन्य के साथ सबमरीन में बैठके जर्मनी हिटलर को मिलने के लिए निकलते हैं। बहुत कम देशवासियों को मालूम होगा कि सुभाष चंद्र बोस एक बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे। सूरत के नजदीक हरीपुरा में ही 1939 मैं गांधी जी द्वारा चयनित सिद्धारमैया नामक कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे प्रतिनिधि को हरा के कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। मतलब यह हुआ कि उस समय कांग्रेस के ज्यादातर सदस्य गांधीजी नहीं किंतु सुभाष चंद्र बोस की सशस्त्र आंदोलन से पूर्ण स्वराज्य वाली आजादी के जंग के समर्थक थे। किंतु चुनाव जीतने के बाद गांधी जी ने उनके समर्थक कांग्रेस के सदस्यों को सुभाष चंद्र बोस को सहकार देने से मना कर दिया जिस कारण अंत में सुभाष चंद्र बोस गांधीजी को इस्तीफा देकर अपने चुने हुए रास्ते पर देश को आजादी दिलाने के लिए निकल पड़े। गांधीजी की कोंग्रेस बिना खड़ग बिना ढाल अहिंसक तरीके से जिन आजादी के लिए लड़ रही थी वह ऐसी आजादी थी जहां देश का अधिकारिक ढांचा और न्यायतंत्र ठीक वैसा ही रहता जैसा अंग्रेजों ने बनाया था और ब्रिटिश पार्लियामेंट में "इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट " पारित कर वैसे ही ठीक शासन चलना था। कांग्रेस ने पहले जो पूर्ण स्वराज्य के लिए आंदोलन किया था वह बेअसर खत्म हो गया था और सारे बड़े नेताओं को जेल में डाल के बेटी सरो ने उस को कुचल दिया था। इसलिए मेरा आज भी मानना है कि देश में जो आजादी मिली उनमें कांग्रेस का कोई बड़ा योगदान नहीं था। आइए अब जानते हे देश की आजादी के पीछे सुभाष चंद्र बोस का कितना बड़ा योगदान था। जर्मनी ने इंडियन रॉयल आर्मी के करीब 35000 सैनिकों को युद्ध बंदी बनाया था। सुभाष बाबू हिटलर से मिले, दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है हिटलर को इस विषय पर समझाते हुए अंग्रेजों के सामने लड़ने के लिए सहायता मांगी और साभ ही साथ उन योद्धाओं को मिलने की मंजूरी ली और उन युद्धबंधको को अपनी इंडियन नेशनल आर्मी - INA में जुड़ने के लिए आह्वान किया।
उनको कहा कि ” सिर्फ पैसे के लिए अंग्रेजों के लिए लडके भारत देश के साथ गद्दारी करने के बजाय मातृभूमि के लिए लड़ते हुए देश की आजादी के लिए लड़ते हुए शहीद होंगे तो आपका जीवन सार्थक होगा। उनके एक आह्वान पर सारे युद्ध बंधक उनके साथ आ गए। ऐसा प्रभाव देखकर हिटलर भी अचंभित हो गया था।
आप मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा, जैसे एक शक्तिशाली नारे के साथ देश के सभी स्वतंत्र सेनानियों को आह्वान किया कि देश को आजाद करने के लिए उनकी आजाद हिंद फौज ब्रिटिश सरकार के सामने एक सशस्त्र युद्ध करने जा रही हैं। देश के हजारों भाई-बहन उनके आह्वान पर अपना सर्वस्व निछावर कर इस फौज में जुड़ गए। बहुत ही कम समय में सुभाष चंद्र बोस ने करीब सवा लाख का सशक्त सेना बल तैयार कर लिया था। जिनमें महिला सैनिक की भी एक बड़ी बटालियन थी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आजादी के पश्चात ७० वर्षों तक युद्ध के फ्रंट लाइन में लड़ने के लिए सशस्त्र महिला की कोई बटालियन नहीं थी। हाल ही में मोदी सरकार नहीं इसमें बड़ा बदलाव कर महिलाओं की भर्ती शुरू की है। वह सुभाष चंद्र बोस ही थे जिन्होंने भारत से बाहर रहते हुए भारत की पहली" गवर्नमेंट ऑफ एक्साइल " का फॉरमेशन किया।
खुद का मंत्रिमंडल का गठन किया और देश को पहला राष्ट्रगान भी अर्पण किया। भारत की पहली सरकार को विश्व के बड़े बड़े देशों ने स्वीकृति दी थी जिनमें जर्मन, इटली, चीन, बर्मा, थाईलेन्ड, फिलिपिंस और जापान जैसे देश शामिल थे। सिंगापुर से जापान की सेना के साथ मिलकर भारत की ब्रिटिश सेना के साथ घमासान युद्ध चला। INA की फौज अंग्रेज को परास्त करते करते अंडमान निकोबार आज का बर्मा और पूर्वोत्तर में कोहिमा तक पहुंच गई थी। परंतु अमेरिका के द्वितीय विश्वयुद्ध में हस्तक्षेप के बाद जब उन्होंने जापान पर हिरोशिमा और नागासाकी के ऊपर एटम बम दागे तब जापान पराजित हो गए और सुभाष चंद्र बोस को जिनका सहकार था वह आधे युध्ध में ही उनको छोड़कर चले गए। फिर भी सुभाष बाबू ने हार नहीं मानी और अंत तक लड़े।
करीब 70000 INA के जवान शहीद हुए। और तीन बड़े अफसर
प्रेमसहगल , गुरबख्शसिंह और शाहनवाज को अंग्रेजों ने जिंदा पकड़ लिया।
INA का नारा था कि लाल किले पर तिरंगा लहराएंगे। इसलिए ब्रिटिशरो ने तय किया कि इन तीनों को जिंदा लाल किले के ऊपर फांसी दी जाए। दूसरी और द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के साथ ही करीब 2200000 सशस्त्र इंडियन आर्मी अपने देश में वापिस आ रही थी। जैसे ही INA कितने अफसरों के ट्रायल की बात मालूम पड़ते ही सेना में विद्रोह हो गया जिनसे ब्रिटिश शासन बुरी तरह से डर गया और उन्होंने भारत को अपने हाल पर छोड़ तुरंत इंग्लैंड वापस जाने का निर्णय लिया।
अंत में ब्रिटिश गवर्नमेंट ने कैबिनेट मिशन बनाया और भारत को कैसे आजादी दी जाए उसके ऊपर देश के विभिन्न पक्षों को एक मत करने के लिए भेजा गया। उसके बाद जो हुआ वह हम सब जानते हैं।
इसीलिए जहां तक मेरी जानकारी है मेरा यह स्पष्ट मानना है कि देश की आजादी के लिए सबसे बड़ा योगदान जो किसी एक व्यक्ति का है तो वह सुभाष चंद्र बोस थे।
अस्तु ।
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