हमारे पूर्वजों ने कहा है कि जैसे एक मनुष्य का व्यक्तिगत चरित्र होता है वैसे ही सभ्यता का भी अपना चरित्र होता है। भारत के अनेक महापुरुषों ने अपने जीवन काल में चीन के वर्तनों से जो उनके चरित्र की अनुभूति की थी और उन चरित्र का भारत और पूरे विश्व पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है उनकी कुछ आगाही भी की थी। यह आर्टिकल इसी विषय को दर्शाता है।
१. स्वामी विवेकानंद: चीन एक सोया हुआ राक्षस है, उसे सोया ही रहने दो। यदि वह उठ खड़ा हुआ तो सारी दुनिया के लिए खतरा पैदा हो जायेगा। (युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द, 1902)
२. सरदार वल्लभभाई पटेल: परम्परा से ही शांतिप्रिय तिब्बतियों पर बल प्रयोग करना अन्याय है, दुनिया में कोई भी देश तिब्बत जितना शांतिप्रिय नहीं है।
(सरदार पटेल, 8 नवम्बर 1950)
३. महर्षि अरविंद: चीन दक्षिण पश्चिम एशिया और तिब्बत पर पूरी तरह छा कर उसके सामने उसे हज्म करने का खतरा पेश कर सकता है और भारतीय सीमाओं तक के सारे क्षेत्र पर कब्जा जमा लेने की हद तक जा सकता है।
४. पूज्य गुरुजी: हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि बौद्ध चीन पिछले कुछ सालों से मर चुका है, रूस ने उसके शरीर में साम्यवाद की आत्मा डाल दी है।
(श्री गुरुजी, जनवरी, 1956)
५. आंबेडकर: यदि भारत ने तिब्बत को मान्यता प्रदान की होती, जैसा कि उसने 1949 में चीनी गणराज्य को प्रदान की थी तो आज भारत-चीन सीमा विवाद न हो कर तिब्बत- चीन सीमा विवाद होता।
६. रजनीश: तिब्बत का विनाश इतिहास में पहचाना जाएगा, खास तौर से जब मनुष्य थोड़ा और जागरूक तथा मानवता कुछ और मानवीय होगी। यह 20 वीं सदी की सबसे बड़ी विपदा है कि तिब्बत भौतिकवादियों के हाथों में पड़ गया है। यदि मनुष्यों में कुछ सभ्य देश होते तो हर राष्ट्र चीन द्वारा तिब्बत पर किए गए आक्रमण के विरुद्ध खड़ा हो जाता।
७. के सुदर्शन जी : अगर युद्ध से बचना है तो युद्ध की तैयारी रखनी होगी, क्योंकि यह समय शत्रु को बख्शने का नहीं बल्कि अपनी शक्ति के वैभव को चमकाने का है।
Ref: Agnimitra Prasad’s FB post