कोरोना ने सूरत के व्यापारी बंधुओं को अपने व्यापार के रोज के समय को बदलने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया है। एक तरीके से यह ” इष्टापत्ती ” ईश्वर की इच्छा से अच्छे भविष्य के लिए आई हुई समस्या है।
गुजरात का सूरत शहर एक तरीके से पूरे भारत के कपड़े के व्यापार का केंद्र है। छोटी-बड़ी मिलाकर 500 से अधिक डाइंग और प्रोसेस मील, हजारों की संख्या में टेक्सचराइजिंग और लूम्स युनिट, करीब 75,000 ट्रेडर्स, हजारों एंब्रॉयडरी मशीन, 500 ट्रांसपोर्टर इन सब को मिलाकर 1000000 से भी अधिक सूरत के नागरीक सिर्फ सूरत के टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े हैं। में भी सूरत का रहने वाला हूं और जब भी किसी टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े हुए व्यापारी से मिलना होता है तब हर बातचीत में एक ही सारांश निकल के आता है की उनकी रोज के जीवन की सबसे बड़ी दिक्कत देर रात तक चलनेवाला व्यापार का समय है। अगर उनका नित्यक्रम देखें तो सुबह 8:00 बजे उठते है। तब तक घर के बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल निकल जाते हैं। बुजुर्ग मां-बाप पूजा खत्म करके कहीं बाहर निकल जाते हैं या तो उनके आराम का समय हो जाता है। धर्मपत्नी सुबह बच्चों को तैयार करने और घर का काम खत्म करके थक गई होती है। 10:00 बजे चाय-नास्ता का समय होता है। करीब 11:30 बजे टिफिन का डिब्बा लेकर अपने व्यापार केलिए निकलते हैं। दोपहर 3:00 बजे तक का समय उनके लिए सुबह का समय होता है। 3:00 बजे अपना लंच करते हैं। शाम को 9:00 बजे तक फिर से काम पर लग जाते हैं और उसको वह शाम का कहते हैं। कई सारे व्यापारी रात का भी भोजन अपने व्यापार के स्थल पर ही मंगा लेते हैं। रात को 10:00 बजे से पहले अपने घर पर पहुंच ही नहीं पाते। और जब घर पहुंचते हैं तब माता पिता और बच्चे लेट गए होते हैं। अगर किसी शादी में जाना हो तो 9:30 बजे से पहले तो वह कभी शादी के स्थल पर पहुंच ही नहीं पाते।
बिना सोचे एक दूसरे के अनुकरण से व्यापार का जो समय तय हो गया है उनमें निजी, पारिवार, सामाज और राष्ट्र के प्रति उनका दायित्व समझो समाप्त हो गया है। अगर देखें तो वह सारे जीवन जी नहीं रहे लेकिन जीवन को काट रहे हैं। चाहे कितने भी रुपए कमा ले, लेकिन ऐसी जिंदगी जी कर अंत में क्या पा लेंगे।
एक बार विवेकानंद केंद्र के माध्यम से गुजरात के विविध इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के पदाधिकारियों को लेकर भारत के नॉर्थ ईस्ट (असम और अरुणाचल) के १० दिन लंबे प्रवास केलिए जाना हुआ। प्रवास के शुरुआत में सभी का आंकलन था कि यहां की प्रजा आलसी है इसी के कारण यहां इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट नहीं हुआ। हर एक दिन वहां के स्थानीय कार्यकर्ता के घर पर उनके रहन-सहन और सामाजिक व्यवस्था को जानने के लिए जाना होता था। किंतु जैसे-जैसे हम उनके बारे में ज्यादा जानने लगे तब अंत में हमें लगा कि हमारा पहले का आंकलन गलत था, दरअसल वह आलसी नहीं लेकिन संतोषी है। पूरा मार्केट सुबह 6:00 बजे खुल जाता है और शाम को 6:00 बजे बंद हो जाता है। शाम 6:00 बजे से लेकर 10:00 बजे तक सब अपना पारिवारिक जीवन अच्छी तरीके से जीते है। एक तरीके से उनका यह जीवन हमें स्पर्श कर गया और हम भी सोचने लगे कि अगर हम भी ऐसा जीवन जीते तो कितना अच्छा होता?
जब कभी टेक्सटाइल से जुड़े व्यापारी से मिलना होता है और उनको बताते हैं कि आप अपने व्यापार का समय सुबह 8.00 बजे शुरू कर शाम 7:00 बजे तक का क्यों नहीं करते। लगभग सब का जवाब यही रहेता है कि अगर ऐसा हो तो अच्छा है लेकिन पूरे समुदाय को कौन समझाए। सब तैयार हो तभी यह संभव है हम अकेले तो यह तय नहीं कर सकते। ऐक तरीके से कोरोना संकट इस गंभीर समस्या का समाधान लेकर आया है। सब जानते हैं सिर्फ सूरत का टेक्सटाइल का व्यापार ही नहीं परंतु पूरे विश्व का व्यापार बाजार एक नई करवट ले रहा है। सभी बिजनेस सेक्टर में व्यापार के तरीके में कुछ ना कुछ बदलाव जरूर आना है। तो क्यों ना टैक्सटाइल सेक्टर इस समस्या को परिवर्तन का आदर्श समय मानकर अपने व्यापार के समय को बदले और अपने, अपने परिवार, समाज और राष्ट्र
के प्रति अपने कर्तव्य के पालन का अवसर प्राप्त करें।
अस्तु ।
वंदे भारत ।