चीन की वामपंथी सरकार के इशारों पर नेपाल और भारत के वामपंथी दलो का मूल उद्देश भारत और नेपाल के हिन्दुओ के बीच सनातनी खून के सदियों पुराने रिश्तो में दरार डालना है।
इस बुधवार को वाराणसी में एक नेपाली युवा का जबरन मुंडन किया और प्रधानमंत्री ओली मुर्दाबाद के नारे भी लगवाए गए। उत्तर प्रदेश के बनारस में रहने वाले एक नेपाली युवक का विश्व हिंदू सेना नामक फर्जी हिंदू संगठन ने जबरन मुंडन करवाया। इतना ही नहीं उससे जबरन जय श्रीराम के नारे लगवाए और नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली मुर्दाबाद भी बुलवाया। इस फर्जी हिंदू संगठन ने नेपाल के प्रधानमंत्री ओली को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर भविष्य में उनका भारत विरोधी निवेदन आता रहा तो उसका भुगतान भारत के नेपाली समाज को उठाना पड़ेगा।
इस विषय के गहराई को समझने के लिए हमें पहले नेपाल का इतिहास जानना जरूरी है।
भारत के संरक्षण मंत्री श्रीमान राजनाथ सिंह ने हाल ही में बयान दिया था कि भारत और नेपाल का सदियों पुराना बेटे बेटी का रिश्ता है। रामायण काल में प्रभु श्री राम की धर्मपत्नी सीता मैया जो कि जनक राजा की पुत्री थी वह मिथिला नरेश जनक आज के नेपाल के राजा थे। आज भी नेपाल में उसी जगह पर जानकी मंदिर सुशोभित है।
आज से 2500 वर्ष पहले जब अलेक्जेंडर ने भारत पर चढ़ाई की थी तब चाणक्य के समय में भी नेपाल का उल्लेख अखंड भारत के एक गणराज्य के तौर पर किया था। अंग्रेज शासन के समय उनके के अधिकारिक विस्तृत भारत के नक्शे में नेपाल भारत का ही हिस्सा था। जिन्हें अंग्रेजों ने 21 Dec, 1923 में ब्रिटिश नेपाल treaty के तहत नेपाल को एक स्वायत्त देश घोषित किया था।
भारत जब आजाद हुआ तब एक समय ऐसा था कि नेपाल भारत में विलीन होता जाना चाहता था लेकिन भारत की तत्कालीन नेतृत्व के दुरंदेशी के अभाव में यह संभव ना हो पाया। 1950 में इंडिया नेपाल दोनों देशों के बीच में शांति और भाईचारे के लिए एक मैत्री करार हुआ था।
राजीव गांधी ने 1988 में अपनी पत्नी सोनिया के साथ नेपाल का जब आधिकारिक दौरा किया था तब पशुपतिनाथ मंदिर दर्शन करने गए थे। यहां सिर्फ हिंदुओं को ही मंदिर में दर्शन की अनुमति होने के कारण सोनिया गांधी को मंदिर में दर्शन करने की अनुमति नहीं दी थी। इसी धटना के चलते नेपाल से बदला लेने के लिए कांग्रेस अपनी विदेश नीति में नेपाल को दरकिनार करता रहा।
प्रधानमंत्री बनते ही मोदीजी ने अपना पहला विदेशी दौरा अगस्त 2014 में नेपाल का ही किया था। तब वहां नेपाल कांग्रेस दल का शासन था और सुशील कोइराला जी नेपाल के प्रधानमंत्री थे। किंतु चीन के इशारों पर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने पुरानी सरकार का तख्तापलट कर शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। तब से नेपाल की सरकार चीन के इशारो पर काम कर रही है और भारत का लगातार विरोध करती आई है।
नेपाल में अप्रैल 2015 में आए भूकंप की स्थिति में भी भारत ने एक मित्र देश होने के नाते नेपाल की पूरी मदद की थी। किंतु तब भी भारत की वामपंथी मीडियाने नेपाल और भारत के बीच दरार खड़ी करने का ही काम किया था।
नेपाल और भारत के बीच में आज फिर से एक बार तनाव की स्थिति क्यों है यह जानने के लिए हमें वर्तमान में भारत और चीन की स्थिति को जानना जरूरी है। पिछले 2 महीनो से भारत और चीन की सेना लद्दाख की गलवान घाटी में आमने सामने खड़ी है। वैश्विक कूटनीतिक युद्ध में मोदी सरकार ने चीन को परास्त कर दिया है। विश्व के सभी दिग्गज देश भारत के साथ खड़े हैं जबकि चीन के समर्थन में सिर्फ पाकिस्तान, नेपाल, तुर्की और उत्तर कोरिया जैसे नगण्य देश खड़े है। चीन भारत के साथ सीधा युद्ध करने की स्थिति में नहीं है तब वह पाकिस्तान और नेपाल जैसे भारत के पड़ोसी देशों को भारत के सामने उफसा रहा है। पाकिस्तान तो भारत का आजादी के समय से दुश्मन रहा है किंतु नेपाल भारत का मित्र देश हैं।
भारत और चीन के बीच युद्ध में आज नेपाल की वामपंथी सरकार खुलकर चीन के समर्थन में खडी है और उत्तराखंड के एक बड़े इलाके को नेपाल का इलाका घोषित कर चुकी है। किंतु आज भी नेपाल की जनता भारत का ही समर्थन करती हैं। इसी कारण नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के, के पी शर्मा ओली को पिछले हफ्ते अपना प्रधानमंत्री पद गंवाना पडे ऐसी स्थिति खड़ी हुई थी। नेपाल मे चाइना की महीला राजदूत Hou Yanqi के प्रयासों ने किसी तरह स्थिति को संभाल लिया।
नेपाल और भारत के वामपंथी चीन के प्रेसिडेंट को ही अपना सर्वस्व मानते हैं। भारत में भी वामपंथियों ने इस युद्ध की स्थिति में खुलकर खुद अपने ही देश भारत का विरोध और चीन का समर्थन किया है। ऐसे में अगर चीन नेपाल मैं अपनी समर्थक नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को बचाना चाहता है तो किसी भी तरीके से नेपाल और भारत के हिंदू समाज में बरसों पुरानी संस्कृतिक समन्वय और एकता को तोड़ना चाहेगा यह स्वाभाविक है। और यही उन्होंने किया।
पिछले 30 वर्ष की लंबी तपस्या के पश्चात संविधानिक लड़ाई लड़ते हुए न्यायीक तरीके से भारत के बहुमत हिंदू समाज का सुप्रीम कोर्ट में विजय हुआ है और अयोध्या में राम जन्मभूमि का भव्य मंदिर बनने जा रहा है। एक तरीके से बड़े लंबे अरसे के बाद विश्व में हिंदू जनमानस का जागरण हुआ है। जिससे भारत में हिंदू समर्थक मोदी सरकार को फायदा होना स्वाभाविक है। इसी के विरोध में भारत के वामपंथी षड्यंत्रकारियों के इशारों पर नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने एक और विवादास्पद बयान दिया है कि ” प्रभु श्री राम का जन्म स्थल नेपाल में है। “
वामपंथी षड्यंत्र को अंजाम देते हुए आज जब फर्जी हिंदू संगठन ने भारत में एक नेपाली युवक को पीटा है तब ऐसा नहीं कि सिर्फ नेपाल ही भारत में बसे हैं, लाखों हिंदू भारतीय भी नेपाल में बसे हैं। हर साल लाखों हिंदू श्रद्धालु नेपाल पशुपतिनाथ और अन्य हिंदू तीर्थ स्थानो के दर्शन केलिए जाते है। अगर भारत के वामपंथीओ के इशारों पर भारत में नेपाली के विरुद्ध ऐसी घटना हो तो फिर नेपाली वामपंथीओ के इशारों पर भारतीय हिंदू श्रद्धालु के ऊपर नेपाल में भी ऐसी घटनाएं भविष्य में होना स्वभाविक है, भारत की घटना के प्रति उत्तर के रूप में कल वेह भी भारतीयों को पीटना शुरू करेंगे। और देखना, ऐसा होके रहेगा। ऐसी घटनाओं से नेपाल और भारत के हिंदु समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक एकता कमजोर होगी जबकि उनके जनमानस में अपने अपने राष्ट्रवाद के प्रभाव में देश के हिंदू आमने-सामने आ खड़े होंगे।
ऐसी स्थिति में भारत खुफिया संस्था का वाराणसी में बुधवार को हुई घटना के तह तक जाना आवश्यक है। जिसने भी यह जघन्य अपराध किया है उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली एक कम्युनिस्ट है उसे अपनी सत्ता बचानी है और चीन के अपने आका को खुश करना है, लेकिन आम नेपाली नागरिक हमारे भाई बहन है और वह भी हिंदू हैं। ऐसे में नेपाली नागरिकों के मन में हम अपने देश की छवि क्यों खराब करें ? वामपंथी यही तो चाहते है।
नेपाल से सामान्य जनमानस में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी का और भारत कि संस्कृति का जितना प्रभाव है उनके सामने चीन के प्रेसिडेंट या चीनी संस्कृति का प्रभाव ना के बराबर है। नेपाल की सरहदें सभी और से भारत से घीरी हुई है। नेपाल को क्रूड ऑयल से लेकर जीवन जरूरत की सारी सामग्री भारत के रास्ते से ही जाती है। ऐसे में नेपाल कि सरकार द्वारा खुलकर भारत का विरोध करना खुद के लिए आत्महत्या से कम नहीं। ऐसे में हम सभी भारतीयों को बहुत संभलते हुए सावधान होकर सिर्फ नेपाल की वामपंथी सरकार की चाल को ही उजागर करना होगा। अगर भारतीयों ने ऐसी स्थितियों में आम नेपाली को टारगेट किया तो एक तरीके से हम भारत, नेपाल और चीन की संयुक्त वामपंथी ताकतों के मलिन उद्देश्य को सफल करने का हाथा बन सकते है।
नेपाल का सम्पूर्ण हिन्दू भारत के साथ है वहाँ लोग नेपाल को पुनः हिन्दू राष्ट्र घोसित करवाने के लिए आन्दोलन कर रहे है। ऐसी स्थिति में हम भारत के हिंदुओं को नेपाल के हिंदुओं के साथ खड़ा रहना है ना कि उनके सामने।
पराजित राष्ट्र कि संस्कृति तब तक नष्ट नहीं होती जब तक वहां कि प्रजा व्यक्ति से व्यक्ति, व्यक्ति को समाज और समाज को राष्ट्र से जोड़ने वाले जीवन मूल्य, धर्म, त्योहार और अपने रीति-रिवाजों का वहन करने में सक्षम हो। पिछले 1000 साल की पराधीनता के काल में भी सनातन संस्कृति की सभी पीढ़ी ने अपने जीवन मूल्यों को बचाया और अगली पीढ़ी तक पहुंचाते रहे। यही कारण से सनातन संस्कृति बची रही। किंतु पिछले 50 वर्षों में भारत को तोड़ने वाली सारी ताकतों ने भारत की संस्कृति को नष्ट करने के लिए इन्हीं जीवन मूल्य को टारगेट किया है। अगर हमारी वर्तमान पीढ़ी सनातन संस्कृति के विश्व कल्याणकारी जीवन मूल्यों को अपनी अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में असक्षम रही तो विश्व की सबसे प्राचीन और जीवित एकमात्र संस्कृति को हम खो देंगे।
अस्तु।